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Government Fails in Medical Entrance Exams

Government Fails in Medical Entrance Exams
मेडिकल प्रवेश परीक्षा में असफल सरकार
 -डॉ राजशेखर यादव

भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश सबंधी परीक्षाओं में खुद सरकार की असफलता सामने आ चुकी है। मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट 2024 की जांच सीबीआई को सौप दी गई है। आशा है कि इस प्रकरण दोषियों को सजा मिलेगी। इस परीक्षा के संदर्भ में काफी खुलासे हो चुके हैं। किसी जांच एजेंसी के लिए इस नतीजे पर पहुंचना मुश्किल नहीं कि पेपर लीक हुआ और परीक्षा की शुचिता भंग हुई।

नीट के बाद अन्य विवाद भी सामने आए हैं। यूजीसी नेट की 18 मई को परीक्षा हुई थी। एक दिन बाद रद्द कर दी गई। नीट पीजी के लिए 23 जून को होने वाली परीक्षा कुछ घंटे पहले स्थगित कर दी गई। इन मामलों में सक्रियता दिखाने वाली सरकार नीट यूजी परीक्षा पर इतनी शिथिल क्यों रही, इस पर सवाल उठ रहे हैं। पिछले 20 दिनों के भीतर यह देश का बड़ा विषय बन चुका है। अब स्टूडेंट्स और अभिभावकों के साथ ही मीडिया एवं समाज के प्रबुद्ध वर्ग को इस परीक्षा में हर स्तर पर हुई गंभीर अनियमितताओं, पेपर लीक, ओएमआर से छेड़छाड़, ग्रेस मार्क्स, खराब प्रबंधन इत्यादि की जानकारी हो चुकी है। 

सबसे पहले हम बिहार पेपर लीक से जुड़े इन पहलुओं पर गौर करें-

01. पांच मई को पेपर लीक के स्पष्ट प्रमाण मिलने के बाद भी एनटीए द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई।

02. आर्थिक अपराध इकाई ने स्पष्ट कहा कि एनटीए ने उन्हें सहयोग नहीं किया। कई लीगल नोटिस भेजने पड़े। इतना असहयोग क्यों?

03. अपराधियों का कबूलनामा स्पष्ट कह रहा है कि उन्हें वही पेपर चार तारीख को रटवाया गया, जो अगले दिन परीक्षा में आया। फिर किस बात की देरी की गई?

4. एनएचएआई के गेस्ट हाउस में एक ऐसे अभ्यर्थी के रुकने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं जो परीक्षा में बैठा।

5. इओयू ने आशंका जताई कि बिहार में पेपर व्हाट्सएप के जरिए राजस्थान एवं हरियाणा से पहुंचा। क्या व्हाट्सएप पर पेपर आना लोकल लीक है?

6. एक सेंटर पर पेपर लीक हुआ तो फिर पटना के बाद रांची, नालंदा, हजारीबाग, देवघर और लातूर के नाम क्यों? शहरों की सूची क्यों बढ़ती जा रही है?

7. घोटाले की आंच बिहार, हरियाणा और गुजरात से निकलकर अब महाराष्ट्र और झारखंड राज्यों तक क्यों पहुंच रही है? क्या अब भी मंत्री जी इसे स्थानीय घटना बताकर लीपापोती का साहस कर पाएंगे?

पुलिस के पास ठोस प्रमाण हैं कि चार मई को एनटीए की कस्टडी से पेपर बाहर आया। वह प्रश्नपत्र संगठित गैंग के वैसे अपराधियों तक पहुंचा, जिनका नेटवर्क पूरे देश में है। अब के जमाने में किसी फ़ाइल को देश दुनिया में फैलाना एक सेकेंड में संभव है।

इसी तरह, ग्रेस मार्क्स से जुड़े इन बिंदुओं पर भी गौर करना होगा-

01. ग्रेस मार्क्स का निर्णय किसने लिया?

2. इस बात का क्या प्रमाण है कि केवल 1563 छात्रों को ग्रेस मार्क्स दिए गए? क्या रिजल्ट की ऑडिट हुई?

3. जिस अधिकारी ने ग्रेस मार्क्स देने का मनमाना निर्णय लिया, उस पर क्या कार्यवाही हुई ?

4. एक सेंटर के सभी बच्चों को ग्रेस मार्क्स मिले या केवल उन्हें जिन्होंने शिकायत या कोर्ट केस किया था?

5. ग्रेस मार्क्स के प्रावधान की जानकारी सभी छात्रों से क्यों छिपाई गई?

6. ग्रेस मार्क्स लाभार्थियों की सूची क्यों नहीं दिखाई जा रही है?

7. स्कोर कार्ड में ग्रेस मार्क्स का विवरण क्यों नहीं था ?

8. क्या जिन बच्चों का टाइम लॉस हुआ, सबको ग्रेस मार्क्स मिले?

9. छत्तीसगढ़ के एक सेंटर पर 45 मिनट के टाइम लॉस की शिकायत का क्या हुआ?

10. झज्जर के सेंटर की इंचार्ज के अनुसार टाइम लॉस नहीं हुआ। तब उन्हें ग्रेस मार्क्स क्यों?

रजिस्ट्रेशन विंडो : एक रहस्यमय विषय रजिस्ट्रेशन विंडो को खोलना भी है। नौ अप्रैल को रजिस्ट्रेशन विंडो दोबारा क्यों खोला गया? जिन 

24000 से ज्यादा छात्रों ने उस विंडो में रजिस्ट्रेशन करवाया उनके स्कोर क्या थे? क्या ये लोग किसी खास पेपर लीक गैंग या कोचिंग से जुड़े थे?

गोधरा मॉड्यूल : गुजरात के गोधरा में एनटीए द्वारा नियुक्त अधिकारी बिके हुए थे । उनकी गाड़ियों से लाखों रुपए बरामद हुए। क्या एनटीए ने नियुक्ति से पहले उनकी जांच की थी?

इस बात की क्या गारंटी है कि गोधरा जैसा कांड किसी अन्य सेंटर पर नहीं हुआ?

सोशल मीडिया पर पेपर लीक :

दैनिक भास्कर के अनुसार बिहार इओयू का कहना है कि सबसे पहले पेपर बिहार में व्हाट्सएप के माध्यम से आया। डेक्कन क्रॉनिकल ने लिखा है कि पेपर टेलीग्राम पर भी लीक हुआ। संजीव मुखिया के पास पेपर व्हाट्सएप पर किसी प्रोफेसर ने भेजा। पटना में चिंटू को व्हाट्सएप पर पेपर मिला। रांची मेडिकल कॉलेज के जिन दस छात्रों ने पेपर सॉल्व किया क्या उन्होंने प्रश्न आगे नहीं भेजे होंगे ?

इतने गंभीर आरोपों की जांच साइबर क्राइम यूनिट से क्यों नहीं करवाई गई?

खराब प्रबंधन : इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार एक थर्ड पार्टी ऑडिट में पाया गया कि नीट 2024 के आयोजन में सुरक्षा प्रबंध पुख्ता नहीं थे। 44 प्रतिशत सेंटर्स पर कमरों में नियमानुसार सीसीटीवी नही थे। स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा पर्याप्त नहीं थी। गार्ड भी नहीं थे। कई जगह गलत कोड के पेपर बच्चों को बांटे गए। स्पष्ट है कि अधिकारियों एवं कर्मचारियों की ट्रेनिंग अधूरी थी। इसके लिए किसे सजा मिली?

रैंक इनफ्लेशन : इस साल हुआ रैंक इनफ्लेशन सिर्फ पेपर लीक से ही एक्सप्लेन होता है। निचले स्कोर्स पर रैंक में कोई इनफ्लेशन नही है। यदि पेपर आसान था और सिलेबस कम था, तो 320-420 स्कोर वाली श्रेणी में भी बच्चों की संख्या में वृद्धि होती।

ट्रांसपेरेंसी का अभाव : एनटीए ने ग्रेस मार्क्स की नीति को पूर्णतः गोपनीय रखा जबकि इतनी बड़ी जानकारी सभी अभ्यर्थियों को दी जानी चाहिए थी। रजिस्ट्रेशन विंडो दोबारा खुलने पर रजिस्टर हुए छात्रों की जानकारी भी गोपनीय रखी गई है। पांच जून के बाद से लगाई गई किसी भी आरटीआई का उत्तर आवेदकों को नहीं दिया गया है।

रिजल्ट और काउंसलिंग की तारीख : परीक्षा का परिणाम चौदह जून को अपेक्षित था। उसे चार जून को क्यों घोषित किया गया? अब जब कोर्ट में सुनवाई आठ जुलाई को है तो दो दिन पहले काउंसलिंग शुरू करने की क्या आवश्यकता थी जबकि पिछली बार काउंसलिंग बीस जुलाई को शुरू हुई थी।

नीट यूजी पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं : पेपर लीक की आशंका के चलते बिना किसी हाई पावर कमेटी की जांच के यूजीसी नेट का पेपर रद्द कर दिया जिसमें ग्यारह लाख छात्र बैठे थे। परीक्षा से कुछ घंटों पहले नीट पीजी स्थगित कर दी जाती है। क्या इन लाखों छात्रों के साथ अन्याय नहीं हुआ? ऐसी परीक्षा में भी अपनी मेहनत से लाखो छात्र मेरिट में आते। क्या उनके साथ अन्याय नहीं हुआ। एक अन्य परीक्षा संसाधनों के अभाव में स्थगित की। क्या एनटीए के पास इतने सीमित संसाधन हैं कि पूर्व घोषित परीक्षा को स्थगित करना पड़े?

 

बाइस जून को एक हाई पावर कमेटी बनाई गई है जो एनटीए में आमूलचूल बदलाव के सुझाव देगी। यह अच्छा कदम है लेकिन उन पच्चीस लाख छात्रों का क्या जिनके साथ हुए घोर अन्याय के कारण ये बदलाव करने पड़ रहे हैं?

मानसिक स्वास्थ्य भी चिंताजनक : रोज खबर आती है आज इओयू मंत्री जी को रिपोर्ट सौंपेगी।छात्रों और अभिभावकों के मन में आशा की किरण जागती है। लेकिन कुछ नहीं होता और एक दिन और बीत जाता है।

विश्व गुरु और विकसित भारत का स्वप्न दिखाने वाली सरकार का अड़ियल रवैया देखकर ये युवा पीढ़ी इनके बारे में क्या सोच बनाएगी, कहना मुश्किल नहीं।

नीति निर्माताओं को अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेनी होगी। कोई अन्य विकसित देश होता, तो मंत्री सबसे पहले अपना इस्तीफा देता। यहां स्वयं तो छोड़िए एनटीए के किसी अदने से कर्मचारी का बाल तक बांका न हुआ। लिहाजा, अब अंतिम उम्मीद कोर्ट से ही है। अगर न्याय पालिका से भी राहत नहीं मिली तो इन छात्रों के मन में सिस्टम के प्रति कितनी नफरत होगी, कल्पना नहीं की जा सकती है।

 

(लेखक 'यूनाइटेड प्राईवेट क्लिनिक्स एंड हॉस्पिटल्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान' के संयोजक हैं)




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