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ऑटिज्म - एक गम्भीर सोशिओ-कम्युनिकेटिव डिसऑर्डर

ऑटिज्म - एक गम्भीर सोशिओ-कम्युनिकेटिव डिसऑर्डर

 आपके बच्चे में यदि आपको कुछ असामान्य दिखाई दे तो आप सामान्य तौर पर मिलने वाली सलाहों जैसे "कुछ बच्चे देर से बोलते हैं" , "अरे बोलने लगेगा लड़के तो देर से ही बोलते हैं।" "अरे मेरी जेठानी का बच्चा भी नही बोलता था , अब तो ऐसा पटर पटर बोलता है कि पूछो मत।" वगैरह पर विश्वास करके डिनायल मोड में मत जाइए। 

ऑटिज़्म का डायग्नोसिस जितना जल्दी से जल्दी हो जाये और ट्रीटमेंट जितना जल्दी शुरू होगा बच्चे के बोलना सीखने, गुणात्मक सुधार होने के उतने ही अधिक चांसेज होते हैं।

ऑटिज़्म एक गम्भीर सोशिओ-कम्युनिकेटिव डिसऑर्डर है। जिसमे व्यक्ति को सामाजिक कौशल तथा बातचीत करने में तकलीफ होती है। यदि समय रहते इलाज शुरू न किया जाए तो स्थिती बहुत गंभीर रूप ले सकती है जिसमे बच्चा कोई कार्य सीख, बोल, समझ नही पाता। 

ऑटिज़्म के बिल्कुल शुरुवाती लक्षण #ऑटिज़्म_के_लक्षण

1-- बच्चा कोई उपयोगी भाषा का इस्तेमाल नही करता, बार बार कुछ शब्द दोहराना जैसे मम्मी, बाबा, 123, abcd वगैरह उपयोगी भाषा नही है। शब्दों का प्रयोग साफ साफ कुछ मांगने, बताने या इंगित करने के लिए होना चाहिए। 

2-- बच्चा आदेशों को समझता नही है, अपने मे मगन रहता है, पुकारने पर जवाब नही देता। जब तक कि ज़ोर से चिल्लाया न जाये। कुछ मांगने या दिखाने के लिए बच्चा उंगली से इशारा नही करता

3-- अजीब व्यवहार, चीजों को बार बार सूंघना, आंखों के पास लाकर देखना, रगड़ना, गोल गोल घूमना, भागते दौड़ते रहना, हाथ ज़ोर ज़ोर से पंख जैसे हिलाना, अंगूठों पर चलना। तेज़ आवाज़ से डरना, कपड़े पहनने, नाखून बाल कटाने से परहेज़, दांत साफ करने, अलग अलग चीजों को खाने में तकलीफ। खाने पीने में अति चूज़ी होना। 

4--अजीब खेल जैसे कारों को लाइन में जमाते रहना, खिलौनों को तोड़ते रहना, खिलौनों से सामान्य तरह से नही खेलना। कल्पनाशक्ति का अभाव।

5-- आंखें न मिलाना, लोगों से डरना, उनके आने जाने फर्क न पड़ना, लोगों को चोट लगने, उनके रोने आदि को न समझ पाना

6-- खतरे को न समझना, ऊपर से कूद जाना, सड़क पर दौड़ना, चोट के प्रति कम संवेदना

7-- छोटी चीजें, पेंसिल, चम्मच आदि ठीक से न पकड़ पाना, चीज़ें गिराना, ज़िप तस्मे बटन आदि न लगा पाना।

इन मे से कुछ लक्षण दिखाई देने पर तुरन्त ही चिकित्सक से सम्पर्क करें। क्योंकि जितना जल्दी डायग्नोसिस होगा, उतना ही बेहतर सुधार होगा। बच्चे के शुरुवाती वर्ष दिमागी बढ़त के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, ये समय बिल्कुल भी गंवाना नही चाहिए, तुरन्त ही ट्रीटमेंट और थेरेपी शुरू होना अत्यावश्यक है इन बच्चों के लिए। 

डॉ रश्मि मोघे हिरवे , कंसल्टेंट मनोचिकित्सक तथा काउंसलर,

सिनेप्स न्यूरोसाइंसेज़, भोपाल





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